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12th યોજના આયોગ ની
સમક્ષ પડકારો
भारत के विकास में पंचवर्षीय योजनाओं की भूमिका को कोई नकार नहीं सकता है। तत्कालीन
सोवियत संघ से अपनाई गई पंचवर्षीय योजनाओं की यह धारणा बहुत कारगर सिद्ध हुई है और
आर्थिक वृद्धि के मामले में पंचवर्षीय योजनाओं ने सकारात्मक भूमिका अदा की है। ८० के
दशक से पहले देश की आर्थिक वृद्धि दर काफी कम थी। ६० और ७० के दशक में भारत की आर्थिक
वृद्धि दर ३.५ फीसदी प्रतिवर्ष थी। ९० के दशक में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद
से देश में अच्छी तरक्की हुई है और वर्तमान ११वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भी वृद्धि
दर अच्छी रही है। यह बात जरूर है कि वैश्विक आर्थिक संकट के चलते वृद्धि प्रभावित जरूर
हुई है। वर्तमान पंचवर्षीय योजना के तहत सरकार ने ९ फीसदी वृद्धि दर का लक्ष्य रखा
था। इस योजना के पहले साल (२००७-०८) देश ने ९.३ फीसदी की वृद्धि दर अर्जित की लेकिन
इसके बाद वैश्विक आर्थिक संकट के कारण इसमें गिरावट रही। इन सब तथ्यों को देखते हुए
माना जा सकता है कि अगले साल शुरू होने वाली १२वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान देश के
सामने कई चुनौतियां होंगी जिनका सरकार को सामना करना होगा।
गरीबों की संख्या में कमी करना
१२वीं पंचवर्षीय योजना में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश में रह रहे गरीब
लोगों की संख्या में कमी करना है। ११वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान गरीबों की संख्या
में दो फीसदी प्रतिवर्ष के हिसाब से कमी करने का लक्ष्य रखा गया था। इस योजना की शुरूआत
(२००७-०८) में देश में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में गरीबों की संख्या २९ फीसदी
थी लेकिन वर्ष २००९-१० के दौरान देश में गरीबों की संख्या ३२ फीसदी हो गई। इस तरह चालू
पंचवर्षीय योजना के शुरूआती तीन सालों के दौरान गरीबों की संख्या में ३ फीसदी बढ़ोतरी
हुई है जबकि इस योजना के दौरान सरकार का लक्ष्य गरीबों की संख्या में २ फीसदी प्रतिवर्ष
के हिसाब से कमी करना था। देश में गरीबों की संख्या में वृद्धि होने का कारण एक तरफ
जहां वैश्विक आर्थिक संकट रहा है जिसमें लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा तो वहीं
दूसरी ओर २००९ में पड़े सूखे के कारण भी इसमें इजाफा हुआ है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना
के दौरान गरीबी को हटाना सरकार को अपनी प्राथमिकता में शामिल करना होगा और सरकार के
सामने यह एक बड़ी चुनौती होगी।
सकल फैक्टर उत्पादकता में बढ़ोतरी
१२वीं योजना के दौरान सरकार के सामने देश की सकल फैक्टर उत्पादकता में भी बढ़ोतरी
करना एक चुनौती होगी। अगर सरकार देश में लोगों की समृद्धि बढ़ाने का प्रयास कर रही
है तो सरकार को उसी अनुपात में उत्पादन भी बढ़ाना होगा। केवल पूंजी और श्रम जैसे आधारभूत
क्षेत्रों में बढ़ोतरी करने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए सारे क्षेत्रों में सरकार
को काम करना होगा।
कृषि क्षेत्र में सुधार
देश की ६० फीसदी जनसंख्या आज भी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। लेकिन ११वीं पंचवर्षीय
योजना के दौरान कृषि क्षेत्र की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं रही है। वर्ष २००९ के सूखे
का कृषि क्षेत्र पर बहुत बुरा प्रभाव हुआ है। यहां तक कि इसके बाद कृषि क्षेत्र की
वृद्धि नकारात्मक हो गई। आज कृषि घाटे का सौदा बन गई है जिसके कारण लोग कृषि क्षेत्र
से तेजी से पलायन कर रहे हैं। १२वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान सरकार के सामने एक तरफ
जहां कृषि क्षेत्र में सुधार करने की चुनौती होगी वहीं कृषि को फायदे का सौदा बनाना
भी सरकार के लिए चुनौती भरा काम है। दरअसल कृषि क्षेत्र से देश की जनसंख्या का बहुत
बड़ा भाग जुड़ा हुआ है। ऐसे में अगर कृषि घाटे का सौदा बनी रही और लोग कृषि से पलायन
करते रहे तो देश में बेरोजगारों की तादाद इतनी हो जाएगी कि उसे संभालना संभव नहीं हो
पाएगा।
महंगाई को काबू करना
देश के आर्थिक विकास में महंगाई अपने आप में एक महत्वपूर्ण बिंदु है। आर्थिक विकास
के लिए सीमित मात्रा में महंगाई का होना जरूरी है लेकिन अगर यह हद से ज्यादा बढ़ जाए
तो फिर आर्थिक विकास पर इसका उल्टा असर होने लगता है। पिछले कुछ समय से जिस रफ्तार
से महंगाई बढ़ रही है वह आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर डाल रही है। खाद्य पदार्थों
की महंगाई सबसे ज्यादा चिंता का विषय है क्योंकि इसका आम आदमी पर सबसे ज्यादा असर होता
है। चालू ११वीं पंचवर्षीय योजनाअ के पहले चार सालों के दौरान देश में औसत महंगाई दर
७.४ फीसदी रही है जबकि १०वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान समान अवधि में औसत महंगाई दर
५.३ फीसदी थी। स्थिति यहां तक आ गई है कि महंगाई को काबू करने के लिए रिजर्व बैंक बार-बार
ब्याज दरों में परिवर्तन कर रहा है।
रोजगार का सृजन
देश में जिस तेजी के साथ जनसंख्या बढ़ रही है उसी तेजी के साथ बेरोजगारों की संख्या
में भी बढ़ोतरी होती जा रही है इसलिए १२वीं पंचवर्षीय योजना के तहत सरकार के सामने
रोजगार के सृजन की कठिन चुनौती होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह रोजगार सृजन
गैर कृषि क्षेत्र में करना होगा। इस बात की जरूरत है कि देश में निर्माण क्षेत्र में
नौकरियां बढ़ाई जाएं। ११वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक क्षेत्र में १०-११ फीसदी
वृद्धि का लक्ष्य तय किया गया था लेकिन इस अवधि में इस क्षेत्र की वृद्धि दर ८ फीसदी
के आसपास ही रही है जो लक्ष्य से कम है। जब तक इस क्षेत्र में बढ़ोतरी नहीं होगी तब
तक रोजगार का सृजन नहीं हो पाएगा। यह बात सही है कि छोटे और लघु उद्योगों से लोगों
को रोजगार मिलता है लेकिन ये उद्योग नया अन्वेषण और तकनीकी सुधार में कोई भूमिका नहीं
निभाते हैं। इसलिए अगर देश में तकनीकी स्तर पर भी सुधार करना है तो बड़े उद्योगों को
बढ़ावा देना होगा।
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